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विश्लेषण

“अब और बलात्कार नहीं”

“किसी जलसे में एक लीडर ने यह ऐलान करवाया
हमारे मंत्री आने को हैं बेदार हो जाओ
यकायक लाउड स्पीकर से गूंजा फिल्म का नगमा
वतन की आबरु खतरे में है होशियार हो जाओ।”

बहुत अफसोस के साथ यह बात कहनी पड़ रही है कि आज हम जिस समाज में, जिस आजाद हिंदुस्तान की आजाद फिजाओं में सांसें ले रहे हैं. अफसोस वहां पर सिर्फ इंसान रह रहे हैं और इंसानियत बरसों पहले दब- कुचल कर कहीं मर गई है. उस बेकफन लाश को कहीं चील- कौवों और कीड़ो- मकोड़ों ने खा लिया और हमें पता भी नहीं चला. हां पता भी कैसे चलता, हमारा ज़मीर जो सो रहा था और अब भी सो रहा है.

इस बात से और भी ज्यादा दुःख होता है कि अब हमें किसी के दुख़ से कोई दुःख नहीं होता. अरे! कौन कह रहा है कि हमारा ज़मीर नहीं जागता, जागा था न कोई उन्हें बताए कि जागा था, वह भी 2012 के दिसंबर की सर्द रातों में, भला दिसंबर की रातों में किसी के लिए कौन जागता है. लेकिन एक सच्ची बात बताऊं तब भी उसकी चींख हमें देर में जगा पाई थी क्योंकि हमारा ज़मीर कम सुन पता है. हमारा ज़मीर उस वक़्त जागा था जब सर्द रातों में उसके गर्म खून के छींटे हमारे मुंह पर पड़े तब उसकी खून की गर्मी से जागा था. वह शायद मरने से बहुत पहले मर गई थी लेकिन उसकी चीखों ने हमें जगा दिया था. पर अफसोस हम फिर से सो गए थे.

लेकिन यह क्या? हम फिर से करवट बदलने लगे, शायद हमारा ज़मीर फिर जागना चाहता है क्योंकि फिर कई निर्भया की चीखें हमारे कान के पर्दे से टकराने लगी हैं. अरे उठो, अब हमें जागना होगा और अब जागते रहना होगा. हर निर्भया के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़नी होगी. हमें आसिफ़ के लिए लड़ाई लड़नी होगी, हमें उन्नाव पीड़िता के लिए लड़ाई लड़नी होगी. हर उस निर्भया के लिए लड़ाई लड़नी होगी जिस के साथ ज़ुल्म हुआ है. क्योंकि अब अपने आप को वतन का रखवाला कहने वाले और जिन्हें हम रक्षक समझ बैठे थे वही हमारे भक्षक बन बैठे हैं “कितने मासूम लोग हैं इस देश में अपने कातिल को मसीहा समझते हैं.

आज हम जिस अहम मुद्दे पर बात कर रहे हैं उसके कुछ आंकड़ों पर नजर डालना बहुत जरूरी है. जिस से हमें इस बात का अहसास होना चाहिए कि यह घिनौनी बीमारी किस प्रकार से हर दिन हमारे समाज में पैर फैलाती जा रही है. आइए बीबीसी न्यूज हिंदी में छपे नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (NCRB 2016)के आंकडों पर एक नजर डालते हैं. जो आप के ज़मीर को अंदर तक झकझोड़ कर रख देगा.

उम्र

रेप के मामले

6 साल से कम 462
6-12 साल 1472
12-16 साल 5769
16-18 साल 8295
18-30 साल 15346
30-45 साल 4877
45-60 साल 484
60 साल से ज्यादा 55

इस देश में 6 साल से कम उम्र की बच्ची और 60 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं के साथ भी बलात्कार होते हैं. गर्भवती औरतें भी बलात्कार का शिकार होती हैं. यह आंकड़े हमारे समाज की बीमार और तुच्छ मानसिकता को दर्शाने के लिए काफी हैं. अब सवाल यह उठता है कि वास्तविकता के आधार पर यह संख्या कितनी ज्यादा होगी जो न तो रिकार्ड में दर्ज हो पाती हैं और न ही मीडिया की सुर्ख़ियां बन पाती हैं. देश के बहुत से पिछड़े इलाकों में तो FIR तक भी दर्ज नहीं होती और हमें दो, चार, दस ,बीस से ज्यादा रेप के मामलों का पता भी नहीं चल पाता. लेकिन वास्तविकता पैर के नीचे से ज़मीन खिसका देने वाली हैं.

जरा सोचिए तो सही 6 साल से कम उम्र की बच्चियों और 60 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं के साथ भी बलात्कार होते हैं. घिन आती है समाज की ऐसी मानसिकता पर और इस से भी ज्यादा दुखी कर देने वाली बात यह है कि जब इन सब मुद्दों पर इंसाफ़ मांगने के लिए लोग सड़कों पर उतरते हैं तो पुरुष वर्ग का एक बड़ा हिस्सा अपने आप को किसी राजनैतिक पार्टी तथा जात और धर्म के आधार पर बांट कर इस मुद्दे से अलग हो जाता है और चंद लोग इंसाफ़ के लिए दर दर भटकते रहते हैं. वो यह क्यों नहीं सोचते कि यह एक विशेष समाज या जात और धर्म का मुद्दा नहीं बल्कि यह हमारे पूरे समाज और हिंदुस्तान के सुनहरे भविष्य का मुद्दा है.

ठीक ऐसे ही हिंदुस्तान में जितनी भी महिला संगठन काम करती हैं वो भी इन सब मुद्दों पर बराबर चुप्पी साधे हुए हैं जो कि हर किसी के समझ से परे है. कम से कम उन्हें तो आगे आकर अपना पक्ष रखना चाहिए, उन्हें तो आगे आकर पीड़िताओं के साथ खड़ा होना चाहिए. लेकिन अब कोई किसी के लिए नहीं बोलता. शायद महिला संगठनों ने भी अपने आप को पुरुष वर्ग की तरह ही किसी विशेष पार्टी की महिला विंग तथा जात और धर्म में बांट रखा है. वह यह बात क्यों भूल जाती हैं कि आज अगर पड़ोस की बहन बेटी को निशाना बनाया जा रहा है तो यही कल हमारे साथ भी होगा और परसों किसी और के साथ भी होगा.

जब आज हम किसी के साथ खड़े नहीं होंगे तो कल हमारे साथ भी कोई खड़ा नहीं होगा. महिला संगठनों को एक होकर संगठन की पहुंच को गांव गांव तक फैलाकर लोगों को इस के प्रति जागरूक करने की जरूरत है जिस से गुनहगारों असामाजिक तत्वों को रोका जा सके. यह बात बहुत स्पष्ट है कि जैसे आतंकवाद का कोई धर्म और मजहब नहीं होता ठीक वैसे ही बलात्कारियों का भी किसी धर्म जात और समाज से कोई संबंध नहीं होता है. वह सिर्फ हमारे समाज और देश के दुश्मन होते हैं. अब हम सभी को जरुरत है सारे भेद भाव को भुला कर, जात पात और धर्म के बंधनों को तोड कर, एक साथ खड़े होकर समाज और देश के दुश्मनों के खिलाफ आवाज उठाएं.

अब हम सब को जागना होगा, मुझे भी जागना होगा, तुम्हें भी जागना होगा, सभी को जागना होगा, और वतन के तथाकथित रखवालों को यह बताते रहना होगा कि हम और हमारा ज़मीर दोनों एक साथ जाग रहे हैं. अब हम तुम्हें और ज़ुल्म करने का मौका नहीं देने वाले क्योंकि हमें पता है कि अपने आप को वतन का रखवाला कहने वाले और राजनैतिक पार्टियों से ही जुडे लोग हर जगह ज़ुल्म करते या ज़ुल्म का साथ देते नज़र आ रहे हैं.

मैं अपने साथियों से और कलम के पुजारियों से कहना चाहूंगा कि वे वतन के ढोंगी रखवालों से होशियार और चौकन्ना रहें क्योंकि ये फर्जी वतन के पूजारी ज़ुल्म तो करते ही हैं लेकिन अगर इन्हें मौका मिले तो चंद सिक्कों में देश को ही बेच डालेंगे .आप लोगों को इस बात का अहसास होना चाहिए कि आजाद हिंदुस्तान के सुनहरे भविष्य की बागडोर और कमान आप लोगों के ही कमजोर कंधों पर टिकी हुई है. नहीं तो:-

“धरा बेच देंगे, गगन बेच देंगे
कली बेच देंगे, कुसुम बेच देंगे
कलम के पूजारी कहीं सो गए तो
वतन के फर्जी पूजारी, वतन बेच देंगे.”

लेखक: शोएब सुफियान, BBA छात्र,
जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली

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