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विश्लेषण

साहब वह हम पर हंसते हैं और घृणा भी करते हैं

मेरे हम उम्र, मेरे से छोटे और बहुजन समाज के मेरे भाइयो और बहनों सुनो.

एक समय था जब लोकतंत्र की नीव रखी गयी, संविधान ने प्रावधान की सबको सामान शिक्षा का अवसर प्रदान होगा. हमारे पुरखों से पता चला हमें भी स्कूल जाने का मौका मिलेगा.

 इससे पहले हम सबके पूरखो की टोली  या तो क्रमागुनीत व्यवस्था में थोपे गए जातिगत काम को करती थी या जनेऊ समाज के खेतो, घरो, खलिहानो, मुहल्लों, उनके खेलने के मैदानों इत्यादि जगहोंपर बंधुवा मजदूर या भयानक भूखमरी के कारण अपने खून को जलाने के साथ अपने घर की इज़्ज़त को बचने की जद्दो जहद करती थी !

कुछ समय बीता थोड़ी चेतना आयी, जनेऊ वर्ग को शिक्षा के कारण मिलते अधिकारों को देख उनके आस पास फटकने वाले वर्ग को लगा की हमारे बच्चो को भी शायद कलम दवात से कुछ डांडिया खींचके नाम लिखना सीख जाना चाहिए, पर जिनके पास मिटटी के दीवारों के ऊपर घास फूस के छप्पर नहीं थे वो कही से नरकट की कलम और चूने का पानी के साथ स्लेट का जुगाड़ कर भी लेते तो भलाउनका मिलान करने से पहले इज़ाज़त अपने मालिक( जनेऊ धारी) से लेनी पड़ती!

समय के साथ हिम्मत भी आयी की जनेऊ वर्ग के मालिकों से पूछ लिया जाये की मालिक/ बाबू साहेब बोल के तो जुते की ठोकरों के साथ डंडो की मारा पड़ी , हमारे पूरखो ने हिम्मत नहीं हारी बंधुवा मजदूरी करते हुए और समय बीता, सामंतवादियों पर निर्भरता  के कारण उनका अपने बच्चो को कलम दवात पकड़ने को लेकर निरंतर मजाक बनाया गया , बोला गया पढ़ा लिखा कर क्या करेगा  आखिर उसे मजदूरी यही करनी है !

किसी तरह एक पीढ़ी ऐसी तैयार हुई जिसमे कुछ लोगो ने नाम लिखना सीखा, उनमे चेतना बढ़ी उन्होंने अपने बच्चो को हाई स्कूल से बी ए तक के सपने देखने लगे, पर फिर से वही दिक्क़ते थी, वहीउपहास वही मजाक का विषय बनना, पर हमारे पूरखो ने हार नहीं मानी, अपने बच्चो को के लिए कुर्बानिया दी, मजाक के विषय बने, वो सब कुछ सहा जो मानवता के स्तर के आस पास भी नहीं !

फिर एक पीढ़ी का कुछ हिस्सा हमारे पूरखो ने नाम लिखने से आगे का बना दिया, पर जब उन लोगो ने सरकारी नौकरी इत्यादि के लिए कोशिश की तो भी जनेऊ वर्ग ने उनका उपहास बनाया,, निरंतर यहीप्रक्रिया चलती रही जो जारी है !

कुछ दशक पहले जब आरक्षण की लड़ाई आपने लड़ने की कोशिश की तो पहले मजाक बना फिर आपके सामने वो तन के खड़े हुए, उनको आपके प्रतिनिधित्व से अपना वर्चस्व टूटता नजर आया !

आप में जब कोई उनके ब्राह्मणवादी पाखंडो पर वार करता नजर आता तो पहले उसका मजाक बनाते फिर उसके सामने डट के खड़े होते हैं !

वो आपका आज भी स्कूल में कॉलेज में मजाक बनाते फिर आपके सामने डट के खड़े होते और आपके निरंतर प्रयास से हार जाते हैं !

वो आपके सोशल मीडिया पर लिखने की बात हो या दैनिक जीवन में उनके खिलाफत की वो पहले मजाक बनाते हैं फिर डट के सामने खड़े होते !

मेरे हम उम्र और छोटे बहुजन साथियो इतिहास में हमारे पूरखो के किये गए संघर्ष को खंगालो तो यही पाओगे जनेऊ आपके कामो से अपने वर्चस्व को टूटता देख पहले आपको उस काम से भटकने हेतुआपका उपहास करता आपके ही लोगो के बीच आपका मजाक बनाते, पर अगर आपका निर्णय अटल है तो इसे भांप कर वो आपके सामने डट के खड़ा होता, उसकी कोशिश यही होती आपके मनोबलको शारीरिक बल के साथ, छल कपट के साथ तोड़ दिया जाये ताकि  आप उस लड़ाई को लड़ ही ना पाओ जिस लड़ाई से उसके हज़ारो साल पुराने वर्चस्व पर चोट लगे, उसका वर्चस्व टूटे !

उन्हें हंसाने दो, तुम फूँक फूँक के कदम रखो, कुछ समय बीतेगा वो तुम्हारे सामने गुरुर में खड़े होंगे, तुम्हे तब भी निरंतरता के साथ लड़ना होगा, तुम्हे हर वो लड़ाई जितनी होगी जिसे तुम्हारे पूरखो नेलड़ा है, तुम्हे हर वो लड़ाई जितनी होगी जिससे इस देश कि सभ्यता पुनः बदल कर सम्राट अशोक की सभ्यता स्थापित हो सके ! तुम्हारा जुझारूपन ही तुम्हारे छोटे बड़े जीत का कारण बनेगा, उन्हें हंसनेदो उनके अगले कदम के लिए सचेत रहो !

The Author: Satyendra Satyarthi is

PhD ( Indian Institute Of Technology ), Dr. Ambedkar National Award Winner.

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