तमिलनाडु राज्य में एक समय हिन्दू धर्म विरोध की लहर बहुत प्रबल थी। वहां राजनीति ने समाज में भरपूर जातीय विभाजन पैदा किया है। अतः बड़ी संख्या में लोग हिन्दुत्व के प्रसार का अर्थ उत्तर भारत, हिन्दी तथा ब्राह्मणों के प्रभाव का प्रसार समझते थे। वहां ईसाई और इस्लामी शक्तियां भी राजनीति में काफी प्रभाव रखती थीं। पैसे की उनके पास कोई कमी नहीं थी। उनका हित भी इसी में था कि हिन्दू शक्तियां प्रभावी न हों।
लेकिन इस सबसे दूर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और हिन्दू मुन्नानी जैसे संगठन समाज के हर वर्ग को संगठित कर रहे थे। धीरे-धीरे उनका प्रभाव और काम बढ़ रहा था। मीनाक्षीपुरम् में हुए सामूहिक इस्लामीकरण से सभी जाति और वर्ग के हिन्दुओं के मन उद्वेलित हो उठे। वे इस माहौल को बदलना चाहते थे। ऐसे समय में हिन्दू संगठनों ने पूरे राज्य में बड़े स्तर पर हिन्दू सम्मेलन आयोजित किये। इनमें जातिभेद से ऊपर उठकर हजारों हिन्दू एकता और धर्मरक्षा की शपथ लेते थे। इससे हिन्दू विरोधी राजनेताओं के साथ ही इस्लामी और ईसाई शक्तियों के पेट में दर्द होने लगा।
इसी क्रम में 13 फरवरी, 1983 को कन्याकुमारी जिले के नागरकोइल में एक विशाल हिन्दू सम्मेलन रखा गया। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार देखकर आठ फरवरी को ‘क्रिश्चियन डैमोक्रेटिक फ्रंट’ के नेता जिलाधिकारी से मिले और इस सम्मेलन पर प्रतिबंध लगाने को कहा; पर जिलाधिकारी नहीं माने। उन्होंने सावधानी के लिए सम्मेलन के नेताओं को बुलाकर नारे, शोभायात्रा तथा अन्य व्यवस्थाओं पर चर्चा की, जिससे वातावरण ठीक रहे। आयोजकों ने उन्हें हर तरह के सहयोग का आश्वासन दिया।
लेकिन ईसाई नेताओं ने हार नहीं मानी। उन्होंने ऊपर से राज्य शासन का दबाव जिलाधिकारी पर डलवाया। अतः अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के 11 फरवरी की आधी रात में पूरे जिले में धारा 144 लगाकर हिन्दू नेताओं की धरपकड़ शुरू कर दी गयी। 12 फरवरी को हिन्दू मुन्नानी के अध्यक्ष श्री थानुलिंग नाडार सहित 56 नेता पकड़ लिये गये। नागरकोइल में आने वाले हर व्यक्ति की तलाशी होने लगी। सम्मेलन में आ रहे वाहनों को 10 कि.मी. दूर ही रोक दिया गया। फिर भी हजारों लोग प्रतिबंध तोड़कर शहर में आ गये।
13 फरवरी को 1,500 लोगों ने गिरफ्तारी दी। फिर भी लगातार लोग आ रहे थे। सम्मेलन में 30,000 लोगों के आने की संभावना थी। इतने लोगों को गिरफ्तार करना असंभव था। अतः शासन ने सम्मेलन के नेताओं से आग्रह किया कि वे ही लोगों को वापस जाने को कहें; पर उनकी अपील से पहले ही पुलिस ने लाठी और गोली बरसानी प्रारम्भ कर दी। सैकड़ों लोगों ने सम्मेलन स्थल के पास नागराज मंदिर में शरण ली। पुलिस ने वहां भी घुसकर उन्हें पीटा। कई लोगों के हाथ-पैर टूट गये; पर पुलिस को दया नहीं आयी।
कुमार नामक एक युवा रिक्शाचालक से यह सब अत्याचार नहीं देखा गया। उसने पुलिस को खुली चुनौती दी कि या तो उसे गिरफ्तार कर लें या गोली मार दें। पुलिस के सिर पर खून सवार था। उसने उस निर्धन रिक्शाचालक को बहुत पास से ही गोली मार दी। वह ‘ॐ काली जय काली’ का उद्घोष करता हुआ वहीं गिर गया और प्राण त्याग दिये।
शीघ्र ही यह समाचार पूरे राज्य में फैल गया। लोग राज्य सरकार पर थू-थू करने लगे। इस घटना से हिन्दुओं में नयी चेतना जाग्रत हुई। उन्होंने निश्चय किया कि अब वे अपमान नहीं सहेंगे और अपने अधिकारों का दमन नहीं होने देंगे। अतः इसके बाद होने वाले सभी हिन्दू सम्मेलन और अधिक उत्साह से सम्पन्न हुए। इस प्रकार नागरकोइल के उस निर्धन रिक्शाचालक का बलिदान तमिलनाडु के हिन्दू जागरण के इतिहास में निर्णायक सिद्ध हआ।
(संदर्भ : कृ.रू.सं.दर्शन, भाग छह)
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