मुहब्बत की नहीं जाती मुहब्बत हो जाती है। न जात पूछती है न पात। अगर दीया उधर भी जल गया तो फिर नैन लड़ जइहें तो कटब हुइबे करी.…ये पत्थर को भी मोम कर देने की ताक़त रखती है। ऊंचे ऊंचे पहाड़ लांघ जाते हैं लोग। फिर बिना सीढ़ी के ऊंची ऊंची दीवारें फलांगना कौन सी बड़ी बात है। कई साल पहले की बात है। मेरे बॉस ने बुलाया और कहा चेयरमैन साहब का फ़रमान आया है – फलां का फलां जगह ट्रांसफर कर दो। हमारा उसूल रहा है कि ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में ‘बॉस इज़ ऑलवेज राईट’। हम हुकुम की तामील करने को चले ही थे कि बॉस ने पूछ लिया – ये समझ नहीं आ रहा कि चेयरमैन ऐसा क्यूं चाहते हैं। उन्होंने कोई वज़ह भी नहीं बताई।
दरअसल बॉस बाहर से ट्रांसफर होकर ताज़ा ताज़ा आये थे। इसलिए उन्हें ऑफिस का न जुगराफिया मालूम था और न हिस्ट्री। हमने उन्हें बताया – सर, दरअसल उस फलां का उसी सेक्शन की एक फलानी से ‘वो’ चल रहा है। किसी के पेट में दर्द हुआ होगा। उसने चेयरमैन साहब तक बात पहुंचा दी होगी, दफ़्तर का माहौल ख़राब हो रहा है। बॉस ने आंखें फैलाईं – ओह तो मामला ‘वैलेंटाइन’ वाला है। तब तो भाई ट्रांसफर से भी कुछ नहीं हो सकता। इरादे पक्के हों तो फौलाद की दीवारें भी उन्हें रोक नहीं सकती। जाओ करो ट्रांसफर। मजबूरी है, चेयरमैन का हुक्म तो मानना ही है। और हमने फलां साहब का सात मंज़िला ईमारत से पीछे की पंद्रह मंज़िला ईमारत के पांचवें माले पर ट्रांसफर आर्डर निकाल दिया।
चार दिन बाद बॉस ने फ़ोन किया – फौरन आओ।
हम दौड़े-दौड़े उनके कमरे में पहुंचे। देखा बॉस कि खिड़की पर टंगे थे – बाहर देखो। हमने खिड़की से बाहर झांका। वो फलां साहब और वो फलानी साहिबा स्कूटर पर सवार होकर कहीं जाने के तैयारी कर रहे थे। बॉस बोले – मैंने कहा था न। दिखाओ रोक कर उन्हें। अरे भई हमारा सब आजमाया हुआ है। अब टाईम ही वेस्ट होगा। एक जगह थे, नैना लड़ाते थे, लेकिन काम तो कर ही रहे थे। ये यह ऊपरवाले इश्क के मामले में खड़ूस क्यों होते हैं? ऊँची ऊँची दुनिया की दीवारें सैंया तोड़ के जी तोड़ के मैं आई रे तेरे लिए सारा जग छोड़ के…अचानक बॉस गुनगुनाने लगे।
हम उन्हें देख रहे थे। लगा, वो कुछ अपनी ही बात कह गए। हमें अपनी और मुस्कुराता हुआ देख कर थोड़ा झेंप गए – ठीक है। तुम जाओ अब। और प्लीज़…हमने कहा – आप इत्मीनान रखें। बात हमारे दिल में ही रहेगी। उनके कमरे से बाहर निकलते समय हम भी गुनगुनाने लगे – ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद, ए मोहब्बत ज़िंदाबाद… दो दिलों के बीच दीवारें खड़ी करने वाले न तब कामयाब हुए थे और न आज होंगे और न कल होंगे। लिखवा लीजिये। हमने भी बहुत दुनिया देखी है।
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