हर फ़िल्म की मेकिंग के पीछे एक कहानी होती है जो कई बार फ़िल्म की कहानी से भी ज़्यादा दिलचस्प होती है। यानी परदे के पीछे की फ़िल्म। ‘मुगल-ए-आज़म’ की शूटिंग के पीछे ऐसी एक नहीं दर्जनों कहानियां हैं। डायरेक्टर के.आसिफ की शाहख़र्ची से फिनांसर शापूरजी बहुत परेशान थे। शापूरजी बहुत बड़े बिल्डर थे और अकबर का एक आदमक़द किरदार उनके ख़्वाब में आकर अक्सर उन्हें कुरेदा करता था। वो दुनिया को उसका शाहकार रूप दिखाना चाहते थे। के.आसिफ़ उनके ख्वाब को पूरा करने में जुटे थे। आसिफ़ जो चाहते थे, शापूरजी जी पूरा करने के लिए तैयार रहते थे। लाखों रूपए खर्च हो गए। लेकिन फिल्म पूरी होने का नाम नहीं ले रही थी। कुछ दिलजले शापूर जी के कान भरा करते थे, आसिफ़ आपके पैसे से ऐश कर रहा, बंगले बनवा रहा है। आलिशान कारों से चलता है। इस पर शापूरजी और आसिफ़ में बहस होती थी। बहस इतनी लम्बी खिंचती कि महीनों फिल्म की शूटिंग बंद रहती।
शापूरजी आसिफ़ को धमकाया करते थे, तुम्हें फ़िल्म से अलग कर दूंगा। आसिफ़ भी उंगलियों में फंसी सिगरेट का कश खींचते और चुटकी बजा कर राख झाड़ते हुए कहते, ठीक है ये सीन पूरा कर लेने दो, फिर जिसे चाहो ले आना और फिल्म पूरी कर लेना। और जब शापूरजी शूट किये सीन के रशेज़ देखते तो ‘वाह वाह’ कर उठते और कहते, आसिफ़ आगे बढ़ो।
एक दिन शापूरजी ने आसिफ़ से कहा, तुमने मुझे बर्बाद तो कर ही दिया है, लेकिन तुम्हारे पास एक मौक़ा है। एक अहसान मुझ पर कर दो ताकि तुम्हारे चक्कर में गंवाई हुई रक़म का कुछ हिस्सा वापस आ जाए। आसिफ़ ने कहा, फरमाइए। शापूरजी बोले, सुना है तुम्हारे दोस्त यूसुफ़ (दिलीप कुमार) एक बड़ी फ़िल्म ‘गंगा-जमुना’ बनाने जा रहा है। मुझे उसमें पार्टनरशिप चाहिए।
आसिफ़ ने चुटकी बजाते हुए सिगरेट की राख झाड़ी, ठीक है।
अगले दिन शापूरजी एक पैकेट लेकर आसिफ़ के घर पहुंचे। उन्होंने पैकेट आसिफ़ को थमाया, शुक्रिया मेरे दोस्त। मेरा काम हो गया। ये तुम्हारी फीस है, पचास हज़ार।
मगर खुश होने की बजाये नोटों का पैकेट शापूरजी की ओर फेंकते हुए आसिफ़ गुस्से से फनफनाये, मुझे दलाल समझ रखा है क्या? कल को मेरे दोस्त यूसुफ़ को पता चलेगा तो वो यही सोचेगा न कि मैं दोस्ती में दलाली खाता हूँ।
शापूरजी ने नोटों का पैकेट उठाया और चुपचाप वापस चले गए।
एक करोड़ के ऐतिहासिक बजट में बनी ऐतिहासिक ‘मुगल-ए-आज़म’ की कमाई से सब लोग अमीर हुए। डिस्ट्रीब्यूटर, सिनेमाहाल के मालिक, फाइनांसर, कलाकार, तकनीशियन आदि सबको मनचाहा मेहनताना मिला। लेकिन बकौल म्युज़िक डायरेक्टर नौशाद अली, इस शाहकार के जनक के.आसिफ़ चप्पल पहनते रहे, चटाई कर सोते रहे, दूसरों से सिगरेट मांग कर पीते रहे, किराये के मकान में रहे और टैक्सी में चलते रहे।
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