भारत एक युवा देश है और 2019 के चुनाव में पैंसठ फीसद मतदाता की औसत उम्र 35 साल से कम होगी. इस युवा बहुमत का नेतृत्व भी युवा की हाथ में होना चाहिये. वक़्त का तक़ाज़ा है कि राजनीतिक पार्टियों को अब अगली पीढ़ी को आगे करना चाहिये. कांग्रेस, एसपी, आरजेडी, लोकदल, डीएमके, नेशनल कान्फ्रेंस अगली पीढ़ी केवल अपनी अपनी पार्टियों में आ ही नहीं गई है बल्कि स्थापित भी गई है. राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, रणदीप सुरजेवाला जैसे दर्जन भर नेता अब कांग्रेस की अगली कतार में हैं.
आज एक बड़ा नाम प्रियंका गांधी का भी जुड़ गया इस लिस्ट में. रायबरेली और अमेठी के पिछले तीन चुनाव प्रचार का अनुभव है उनके पास और जनता से संवाद स्थापित करने की बेहतरीन क्षमता भी. इसके अलावा कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवाणी, हार्दिक पटेल जैसे ऊर्जावान युवा नेता राजनीति के नये स्टार के रूप में उभर चुके हैं. दर्जनों छात्र नेता भी उभरे हैं हाल के सालों में. ये सब युवा नेता 30-40 की उम्र के दरमियान हैं और अगले बीस साल तक राजनीति में सक्रिय रह सकते हैं.
बीजेपी के अगले दो दशक में इन नेताओं के मुक़ाबले कौन होंगे कहना मुश्किल है. वाजपेयी, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने अपनी अगली पीढ़ी की एक लंबी कतार को मौके दिये और आगे बढ़ाया था जिनमे प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, अनंत कुमार, गोपी नाथ मुंडे, अरुण जेटली अपने वक़्त के बड़े नेता थे. मोदी उस टीम में नहीं थे लेकिन कॉर्पोरेट गठजोड़ की बदौलत लाइन तोड़ कर बाकियों से आगे निकाल गये. लेकिन मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने पार्टी के अंदर वैसी दूसरी कतार नहीं खड़ी की जैसी वाजपेयी-आडवाणी-जोशी की तिकड़ी ने की थी.
दूसरी पीढ़ी ने अगर असानी से पार्टी की कमान संभाल ली तो इसका श्रेय बीजेपी की इसी संस्थापक तिकड़ी को जाता है. राजनीति की ये रिले रेस 2019 में निर्णायक चरण में है. अधिकांश गैर बीजेपी पार्टियों के युवा नेता अपनी पिछली पीढ़ी से बेटन लेकर दौड़ चुके हैं. मोदी-अमित शाह अपना बेटन किसे देंगे ये इन्हे भी शायद नहीं मालूम होगा.
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