‘राष्ट्रीय राजधानी में एक महान संगीतज्ञ को गाने से रोकना महज़ असहिष्णुता नहीं है- यह बर्बरता है.’ हिन्दुत्ववादी सोशल-मीडिया-गुंडों के दबाव में टी एम कृष्णा के कार्यक्रम को रद्द किये जाने पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा का यह कथन बिलकुल सटीक है. मेग्सैसे अवार्ड पानेवाले टी एम कृष्णा कर्णाटक संगीत के सर्वोत्तम गायकों में से हैं. उनकी मुश्किल सिर्फ यह है कि वे गायकी के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर मुखर एवं सक्रिय हैं और इस समय की प्रतिक्रियावादी शक्तियों के ख़िलाफ़ अक्सर बिना लाग-लपेट के अपनी बात रखते हैं.
दिल्ली में स्पिक मैके और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में होने जा रहे ‘डांस एंड म्यूजिक इन द पार्क’ कार्यक्रम में 17 नवम्बर को उनका संगीत-कार्यक्रम था. 10 नवम्बर को इस कार्यक्रम के लिए उनके नाम की घोषणा होने के बाद से हिन्दुत्ववादी ट्रोल्स ने इस कार्यक्रम के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ दी. उनकी हुल्लड़बाज़ी का मुख्य बिंदु यह था कि कृष्णा जीसस और अल्लाह के बारे में गाने गाता है, भारत-विरोधी है, अर्बन नक्सल है, और ऐसे आदमी का कार्यक्रम विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा जनता के पैसे से आयोजित किया जा रहा है.
इसके बाद, निश्चित रूप से, प्राधिकरण के ऊपर केंद्र सरकार की ओर भी दबाव आये होंगे, जिसका नतीजा यह हुआ कि बहुत कमज़ोर बहानों का सहारा लेकर प्राधिकरण ने इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को प्राधिकरण के चेयरमैन गुरुप्रसाद महापात्र ने यह सफाई दी कि कुछ बाध्यताओं के कारण हम उस दिन फ्री नहीं हैं. यह बहुत शर्मनाक है कि एक विलक्षण गायक को, संवैधानिक मूल्यों को सर्वोपरि माननेवाले अपने विचारों के कारण, कला के प्रदर्शन से रोका जा रहा है.
टी एम कृष्णा कर्णाटक संगीत की जिस महान परम्परा के वारिस हैं, उसे देखते हुए यह समझा जा सकता है कि भारतीयता की बात करनेवाले हिन्दुत्ववादियों के मन में भारतीय परम्पराओं के लिए कितना सम्मान है! दिल्ली शहर के संगीतप्रेमियों को कृष्णा जैसे कलाकार की प्रस्तुति से ही नहीं, उनके साथ-साथ, दो दिन के कार्यक्रम में आनेवाले अनेक नामचीन कलाकारों की प्रस्तुतियों से वंचित करनेवाले इस गिरोह को अपनी कारस्तानियों का ज़रूरी जवाब मिलना चाहिए.
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