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न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा ने 5 छात्राओं का किया निष्कासन

महाराष्ट्रा| महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा प्रशासन ने एक फर्जी मारपीट और एफ.आई.आर. के आधार पर (विभिन्न धाराओं का हवाला देते हुए, जो क्रमश: 143, 147, 149, 312 और 323 हैं ) 5 महिला विद्यार्थियों/शोधार्थियों (04 पीएच-डी. और 01 बी.एड.–एम.एड. एकीकृत) को एकतरफा कार्रवाई करते हुए विश्वविद्यालय से निष्काषित कर दिया है. हैरत की बात यह है कि इसके लिए विश्वविद्यालय ने अपने स्तर की न कोई जांच कमिटी बनाई बकौल छात्राओं के अनुसार बिना किसी कमेटी के, न ही प्रोक्टर, न ही छात्र कल्याण अधिष्ठाता और न ही संबन्धित विभाग से कोई पूछताछ की ज़हमत उठायी गयी.

घटना वाले दिन दो छात्राओ में से कोई भी परिसर से बाहर ही नहीं गया जिसका पुख्ता सबूत विश्वविद्यालय के सीसीटीवी और हॉस्टल का आवक-जावक रिकॉर्ड है. बार-बार विश्वविद्यालय प्रशासन से छात्राएं बेगुनाही का सबूत मांगती रही, परन्तु प्रभारी रजिस्ट्रार ने 10 दिन घुमाया और बाद में कहा कि- कुलपति महोदय ने कोई भी जानकारी देने से माना किया है. जब छात्राओ ने अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही  तो बोले- ये तो मामला विश्वविद्यालय के बाहर का है. इतना ही नहीं जब छात्राओ के अभिभावकों ने कुलपति एवं कुलसचिव से बात करनी चाही तो बिना किसी कमेटी गठन के निष्कासन कैसे किया? तो माननीय कुलपति ने बहुत ही भद्दे लहजे में कोई बात सुनने से इंकार कर दिया. और न ही पीड़ित छात्राओं को अपना पक्ष रखने का मौका दिया. जबकि न घटनास्थल विश्वविद्यालय की परिधि में आता है और न ही शिकायतकर्ता का संबंध इस विश्वविद्यालय से है. इस मामले की जांच सिटी एस. पी. वर्धा की देखरेख में आई.जी. नागपुर के अधीन चल रही है. उनके द्वारा फिलहाल आरोपियों के बयान लिए जा रहे हैं और किसी पर दोष सिद्ध नहीं हुआ है. बावजूद इसके आई.जी. की जांच प्रक्रिया पूरी हुए, इन पाँच छात्राओं को विश्वविद्यालय द्वारा निष्काषित किया गया है जो कि असंवैधानिक है, किसी दृष्टि से उचित नहीं है.

मामला चेतन सिंह बनाम ललिता का है । दोनों ही दिल्ली की निवासी हैं और हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के छात्र हैं. ललिता बी. एड.–एम. एड. एकीकृत की छात्रा है जबकि चेतन सिंह हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग का पीएच-डी. शोधार्थी है. पिछले 5 वर्षों से दोनों का प्रेम संबंध रहा है. चेतन सिंह द्वारा कई वर्षों से विवाह करने का प्रलोभन देते हुए लतिता का यौन शोषण किया. अंततः चेतन सिंह ने ऐन मौके पर ललिता से किए विवाह के वादे से मुकरते हुए किसी अन्य लड़की सोनिया से विवाह कर लिया.  

दिनांक 29/12/2017 को ललिता के पिता – हेतराम ने चेतन सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुए आईपीसी की धारा 376, 323, 506, 417 के तहत स्थानीय राम नगर पुलिस स्टेशन, वर्धा में मामला दर्ज कराया. इस केस में विश्वविद्यालय की चार लड़कियां आरती कुमारी, विजयालक्ष्मी सिंह, कीर्ति शर्मा, शिल्पा भगत पीड़िता के गवाह थीं. हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने चेतन सिंह को यौन शोषण के आरोप में विश्वविद्यालय के महिला सेल के सिफारिश पर निष्काषित कर दिया. कुछ दिन पुलिस हिरासत में रहने के बाद आरोपी चेतन सिंह को कोर्ट से इस शर्त पर जमानत मिल जाती है कि जमानत के बाद पीड़िता व गवाहों को किसी प्रकार से परेशान नहीं करेंगे. इसके बाद आरोपी चेतन सिंह विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास के निकट ही पंजाब राव कॉलोनी में अपनी पत्नी सोनिया के साथ किराए पर रहने लगा. यह कॉलोनी महिला छात्रावास तथा वर्धा शहर के बीच स्थित है. इसी दौरान चेतन सिंह पीड़िता व गवाहों को उकसाने के लिए विश्वविद्यालय के ही कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के छात्रों के साथ-साथ अपनी पत्नी सोनिया सिंह को मोहरा बनाकर पीड़िता के साथ-साथ गवाहों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने का प्रयास करने लगा.

इसी दौरान दिनांक 03/05/2018 की संध्या को पीड़ित छात्रा ललिता की हाथापाई पहले से सेंध लगाये पंजाब राव कॉलोनी में उस समय पीड़िता ललिता के साथ होती है जब वह महिला छात्रावास से वर्धा शहर की ओर अपनी एक महिला मित्र रिंकी के साथ जा रही होती है. पीड़िता की महिला मित्र रिंकी एक साजिश के तहत उसे अपने साथ ले जाने के लिए तैयार कर लेती है और मौका-ए-वारदात पर मोबाइल पर बात करते-करते पीछे हो जाती है. इस हाथापाई में दोनों पक्षों को चोट आती है. घटना के तुरंत बाद चेतन सिंह रात्री 8:00 पत्नी के साथ रामनगर पुलिस थाना में जाकर ललिता के खिलाफ एनसीआर दर्ज करता है जिसमें धारा 504, 506 के तहत आरोप लगाए जाते हैं.

दूसरी ओर ललिता भी विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास के कर्मचारी, गार्ड, केयरटेकर तथा 3 महिला मित्र के साथ रामनगर थाने जाकर चेतन सिंह के खिलाफ धारा 324 के तहत केस दर्ज कराती है. यह प्रक्रिया रात 10:00 बजे से लेकर सुबह 3:00 बजे तक चलती है. इसी दौरान रामनगर थाने के ए.एस.आई. सचिन यादव के द्वारा पीड़िता को धमकाया भी जाता है. दिनांक 08/05/2018 को चेतन सिंह की पत्नी सोनिया सिंह द्वारा हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा को लिखित शिकायत पत्र दिया जाता है जिसमें केस की पीड़िता पक्ष की 4 मुख्य गवाहों के नाम शामिल कर झूठे आरोप लगाए गए कि 4 गवाह और पीड़िता (ललिता) ने चेतन सिंह व उसकी पत्नी के साथ मारपीट की जिससे उसका गर्भपात हो गया. एक झूठी मेडिकल रिपोर्ट जो सेवाग्राम से बनाई गई है, के आधार पर 07/06/2018 को एफआईआर दर्ज की गई.

गौर करनेवाली बात यह है कि एन.सी.आर. में पीड़िता के अलावा किसी का भी नाम नहीं है.लेकिन बाद में एफआईआर में 4 अन्य नाम जोड़ दिया गया. इससे पूर्व ललिता के साथ दिनांक 03/05/2018 को मौका-ए-वारदात पर मौजूद रहने वाली उसकी महिला साथी रिंकी आरोपी से जुड़कर पीड़िता (ललिता) के खिलाफ झूठी गवाही देती है कि उसने पांचों लड़कियों को चेतन सिंह की पत्नी सोनिया को मारते हुए देखा. जबकि वास्तविकता यह है कि घटना के समय यानि संध्या 7:30 बजे आरती कुमारी विश्वविद्यालय के गेट क्रमांक 01 पर सीसीटीवी कैमरा के सामने थी, विजयलक्ष्मी बाहर दुकान पर थी, कीर्ति शर्मा हॉस्टल के बाहर ही नहीं निकली, और शिल्पा भगत सम्राट नगर स्थित अपने घर पर थी. सबके पास अपने-अपने गवाह हैं. 

इतना ही नहीं रामनगर थाने का पी.एस.आई. सचिन यादव पीड़िता और उसके साथ के गवाह के अभिभावक को धमकी देता है कि “5 लड़कियों की पीएच-डी. खत्म करवा दूँगा और सब को जेल कराऊँगा”. पी.एस.आई. का यह रवैया देखकर पीड़िता (ललिता) ने इसकी शिकायत नागपुर आईजी से की. आई. जी. ने मामले को तुरंत संज्ञान में लेते हुए वर्धा एस. पी. से जांच प्रक्रिया शुरू करवाया. 6 जुलाई 2018 को आरोपियों के बयान दर्ज़ कराया गए. उसी दिन 6 जुलाई 2018 को एफआईआर को आधार बनाते हुए विश्वविद्यालय द्वारा 5 लड़कियों को बिना किसी प्राथमिक जांच किए निलंबित कर दिया गया. यह मुंबई न्यायालय के आदेश क्रमांक 9889/2017 का खुला उल्लंघन है. जिसमें साफ-साफ लिखा है कि किसी पर भी एफआईआर दर्ज होने के कारण विद्यार्थियों के शिक्षा लेने के संवैधानिक अधिकार का हनन करने का अधिकार किसी संस्था के पास नहीं है. 

विश्वविद्यालय प्रशासन का एक तरफ़ा कार्यवाही  करना, छात्राओ का पक्ष जाने बिना सीधे कार्यवाही स्वरुप उनका निष्कासन किया जाना आरोपियों को संरक्षण देने का कार्य कर रहा है. इस घटना में  पूर्व में छेड़खानी के आरोप में शामिल संजीव झा और उनके साथियों का नाम भी इसमे शामिल है जो कि चेतन सिंह की आड़ में अपनी पुरानी रंजिश निकालने में लगा जिसे विश्वविध्यालय में एक छात्रा के साथ छेड़खानी के आरोप में निष्काषित के साथ- साथ दो साल के लिए पीएच.डी. बैन कर दिया गया था. जिसको पीडिता ने एन.सी.आर. के माध्यम से थाने में नाम दर्ज करवाया है. संजीव झा के छेड़छाड़ के मामले में ये छात्रायें पीड़ित छात्रा को न्याय दिलाने के लिये हुए आन्दोलन और संघर्ष का हिस्सा थीं.  विश्वविध्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर अनिल अंकित राय की भूमिका इस पूरे मामले में पीड़ित छात्राओं के खिलाफ रही है. 

वहीं गौर  करने वाली बात ये है कि कार्यकारी कुलसचिव प्रो. के.के.सिंह के अधिकार क्षेत्र में सिर्फ वित्तीय विभाग से सम्बंधित कार्य आता है न कि विद्यार्थियों के विषय से सम्बंधित कोई निर्णय लेना. एक लम्बे समय से कुलसचिव का पद खाली होने की वजह से ये सभी कार्य कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र के अंतर्गत आता है  परन्तु यहाँ नियमों के विरूद्ध जाकर निष्कासन का कार्य कुलसचिव के द्वारा किया जाता है.

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